V.S Awasthi

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पंख पखेरू उड़ गए





पंख पखेरू उड़ गए
धरा पर धरा शरीर
नाम खत्म हो गया है
अब मिट्टी हुआ शरीर
मिट्टी जो हुआ शरीर 
उसी पर गर्व हम करते
यदि शरीर मेरा होता तो
हम क्यों मरते
शरीर हमारे वश में नहीं
स्वछन्द ये रहता
पंख पखेरू के कब्जे में
ये हरदम रहता
ना हम इसको लाए थे
ना ही इसको ले जायेंगे
मुट्ठी बांध के आए थे
और हाथ पसारे जायेंगे
लाने वाला कोई और है
ले जाने वाला कोई और है
मेरा मुझमें कुछ नहीं
और कहीं ना मेरा ठौर
फिर भी हम धन दौलत का
इतना ढेर लगाते
बस चलता तो इसको
साथ बांध लें जाते
मानव तन तो है
बस कठपुतली
ईश्वर ही इसे नचाता है
जब खेल खत्म होता उसका
तो वही बांध ले जाता है
हम तन पर नहीं घमंड करें
जब तक हैं अच्छे कर्म करें
ईश्वर के हम गुणगान करें
सब जीवों का सम्मान करें

विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर


Pratiyogita hetu

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8 Comments

Seema Priyadarshini sahay

04-May-2022 02:46 PM

बहुत खूबसूरत

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Shrishti pandey

04-May-2022 10:56 AM

Very nice

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Punam verma

04-May-2022 10:21 AM

Very nice

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